सीहोर। कलियुग में माया का प्रभाव अधिक रहता है। बड़े-बड़े भक्त भी कई बार इस माया के जाल में फंस जाते हैं। भक्ति से ही इस जाल से मुक्ति संभव है। ब्रह्म तत्व, जगत तत्व और आत्म तत्व मिलकर सृष्टि की संरचना को समझते हैं, जहाँ ब्रह्म तत्व परम सत्य और आधार है, जगत तत्व इस ब्रह्म से उत्पन्न परिवतज़्नशील ब्रह्मांड है, और आत्म तत्व प्रत्येक जीव में स्थित वह चैतन्य है जो ब्रह्म का अंश है और अपनी पहचान से ब्रह्म को पाता है। उक्त विचार ग्राम छतरपुर में जारी सात दिवसीय भागवत कथा के दूसरे दिन जगतगुरु पंडित अजय पुरोहित ने कहे।
रविवार को कथा के दूसरे दिन आत्म तत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि हमारे तन में दो आत्मा हैं। एक आत्मा हमारे जीव की है, जो दुनिया की मोह माया में फंसा है और दूसरी आत्मा वह है, जो हर वक्त पूर्ण ब्रहम परमात्मा से मिलन को तरसती रहती है। जीव की आत्मा के प्रभाव में वह भी दुनिया की मोह माया में उलझी रह जाती है। परमात्मा से मिलन करवाने वाली रूह के लिए जरूरी कार्य करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि इंसान अगर ये सोचे कि मैं कौन है, कहां से आया र्हं और इस दुनिया का सफर र्परा करने के बाद मुझे आत्मा जाना कहां है, तभी हम सही ढंग से अध्यात्म की राह पकड़ सकते हैं। क्योंकि जीव की आत्मा तो जैसे इंसान से कर्म करवाती है, वैसा ही फल भोगने के लिए स्वर्ग और नर्क की भागीदार बनती है। अच्छे बुरे कर्मो का लेखा पूरा होने पर फिर से जीव की आत्मा 84 लाख योनियां भुगतने को इस पृथ्वी लोक में जन्म लेती है। इंसान अपनी असली आत्मा की आवाज को मोह माया में दबने न दे बल्कि ग्रंथ के जरिये र्पर्ण ब्रहम परमात्मा की पहचान कर आवागमन के चक्रों से मुक्त हो।

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