ग्सीहोर। कृषि के बदलते दौर में अब परंपरागत खेती से अधिक आमदनी संभव नहीं रही। ऐसे में ‘‘मल्टीलेयर फॉर्मिंग’’ यानी बहुपरतीय खेती किसानों के लिए क्रांतिकारी विकल्प बनकर उभर रही है। जिला सीहोर के ग्रामीण क्षेत्रों हीरापुर एवं उलझावन में इस विषय पर दो दिवसीय जागरूकता कार्यशालाओं का आयोजन किया गया, जिसमें विशेषज्ञों ने बताया कि सीमित भूमि में भी किसान सालभर में 7 से 8 लाख रुपए तक कमा सकते हैं।
मल्टीलेयर फार्मिंग (बहुपरतीय खेती) विषय पर डा. अभिषेक गुप्ता ने मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्राद्यौगिकी परिषद, भोपाल के प्रायोजन में सांईसटेक एजूकेशन एवं जनकल्याण समिति, भोपाल के सहयोग से समझाया कि बहुपरतीय खेती के अंतर्गत एक ही खेत में एक साथ 3 से 5 प्रकार की फसलें उगाई जा सकती हैं। उदाहरण के लिए, जमीन के नीचे हल्दी या अदरक, बीच में पालक जैसी सब्जियां, ऊपर लौकी या करेला की बेलें और किनारों पर मक्के जैसी लंबी फसलें ली जा सकती हैं। इससे फसल चक्र बना रहता है और भूमि का पूरा उपयोग होता है।
कम लागत, अधिक मुनाफा
‘‘मल्टीलेयर फॉर्मिंग’’ की सबसे खास बात है कम लागत और अधिक उत्पादन। जब एक ही खेत में एक साथ कई फसलें ली जाती हैं, तो मजदूरी, सिंचाई, कीटनाशक और रखवाली का खर्च लगभग एक चौथाई रह जाता है। वहीं दूसरी ओर, उत्पादन बढऩे से लाभ आठ गुना तक पहुंच जाता है।
जमीन कम हो रही, समाधान बहुपरतीय खेती
कार्यशाला में डॉ. अभिषेक गुप्ता ने बताया कि तेजी से बढ़ती शहरीकरण, सडक़ विस्तार और औद्योगीकरण के कारण खेती योग्य जमीनें लगातार घट रही हैं। ऐसे में किसानों को चाहिए कि वे कम जमीन में अधिक उत्पादन के फार्मूले को अपनाएं। बहुपरतीय खेती इस चुनौती का स्थायी और वैज्ञानिक समाधान बन सकती है।
12 महीने आय का अवसर
इस मॉडल को अपनाकर किसान सिर्फ सीजनल खेती तक सीमित नहीं रहते। मल्टीलेयर फार्मिंग की मदद से वे 12 महीने लगातार उत्पादन कर सकते हैं। परंपरागत खेती की तुलना में यह तरीका न केवल आय बढ़ाता है बल्कि मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी बनाए रखता है।
तकनीक और वैज्ञानिक सलाह है जरूरी
कार्यशाला में बताया गया कि बहुपरतीय खेती में फसलों का चुनाव वैज्ञानिक सोच से करना जरूरी है, ताकि एक फसल दूसरी को पोषक तत्व दे और किसी प्रकार की प्रतिस्पर्धा न हो। इसके लिए किसानों को कृषि वैज्ञानिकों और प्रशिक्षण कार्यक्रमों से जुडऩा चाहिए।
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