भाग्य, समय और कर्म इन तीनों में श्रेष्ठ और बलवान कौन है? मुनि श्री निर्णय सागर महाराज

सीहोर      दिगंबर जैन संत समाधिस्थ आचार्य गुरुवर 108  श्री  विद्यासागर सागर जी महाराज साहब से दिक्षित वर्तमान आचार्य 108 श्री समय सागर महाराज साहब के परम प्रभावक शिष्य पाठशाला प्रेरक मुनि श्री निर्णय सागर जी महाराज ने श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर मे  श्रावक श्राविकाओ को संबोधित करते हुए प्रवचन मे कहा कि भाग्य ,समय और कर्म तीनो मे श्रेष्ठ और बलवान कौन है पर विस्तार से  बताते हुए कहा की


अब श्रेष्ठ और बलवान की बात करें तो महत्वपूर्ण यह है कि  समय सबसे बलवान होता है यह बात सर्वोपरि है । वही कर्म सबसे श्रेष्ठ. भाग्य कोई अलग चीज नहीं है बल्कि आपके संचित कर्म ही होते हैं जो आपके प्रारब्ध के अनुसार इस जन्म के लिये पूर्व निर्धारित करके आपका जन्म होता है.

मुनि श्री कर्म पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए बताया कि  

लेकिन कर्मों को ईश्वर ने मनुष्य को बुध्दिजीवी होने के कारण उनके अपने विवेक पर छोड़ दिया है. इसीलिए मानव योनि कर्म योनि होती है और उनके कर्म ही आत्मा के पुनर्जन्म और योनि को निर्धारित करेंगे. अन्य योनियों में कर्म भी ईश्वर के हाथ में ही रहते हैं इसीलिए इन्हें भोग योनि कहा जाता है जहां पर मनुष्य अपने कर्म अनुसार इन्हें भोगता है. अगर भाग्य और समय का साथ मिल जाता है तो सफ़लता शीघ्र मिल जाती है.

समय चूंकि परिवर्तनशील होता है और बदलता रहता है तो कभी कभी सफ़लता थोड़ा देर से उपयुक्त समय आने पर मिलती है. समय की यही विशेषता इसे बलवान बनाती है और लोगों को कठिन समय उम्मीद की किरण प्रदान करती है और अच्छे समय में ईश्वर का शुक्रगुजार. समय की यही गति ईश्वर के होने का एक महत्वपूर्ण सबूत है. समय की गति को ईश्वर नें अपने हाथ में रखा है.

लेकिन कभी कभी बहुत प्रयास करने पर भी बहुत समय तक सफ़लता हासिल नहीं हो पाती तो कह सकते हैं कि ये हमारे भाग्य में नहीं था.

अब श्रेष्ठ और बलवान की बात करें तो शास्त्रों में बताया गया है कि समय सबसे बलवान होता है और कर्म सबसे श्रेष्ठ. भाग्य कोई अलग चीज नहीं है बल्कि आपके संचित कर्म ही होते हैं जो आपके प्रारब्ध के अनुसार इस जन्म के लिये पूर्व निर्धारित करके आपका जन्म होता है.

लेकिन कर्मों को ईश्वर ने मनुष्य को बुध्दिजीवी होने के कारण उनके अपने विवेक पर छोड़ दिया है. इसीलिए मानव योनि कर्म योनि होती है और उनके कर्म ही आत्मा के पुनर्जन्म और योनि को निर्धारित करेंगे. अन्य योनियों में कर्म भी ईश्वर के हाथ में ही रहते हैं इसीलिए इन्हें भोग योनि कहा जाता है जहां पर मनुष्य अपने कर्म अनुसार इन्हें भोगता है.।

प्रातः श्री जी के अभिषेक शांति धारा नित्य नियम पुजा अर्चना विधान मंडल आचार्य गुरुवर विद्यासागर सागर महाराज साहब कि संगीत मय पूजा अर्चना मुनि श्री के सानिध्य मे श्रावक श्राविकाओ ने धार्मिक अनुष्ठान संपन्न कर धर्म लाभ अर्जित किया ।

दोपहर मे स्वाध्याय धार्मिक शिक्षण कक्षा मे उपस्थित श्रध्दालुओ ने धार्मिक अनुष्ठान विधी विधान के लिए ज्ञानार्जन किया ।

संध्या को गुरु भक्ति तत्पश्चात श्रावक श्राविकाओ ने प्रश्न के माध्यम  से  उत्तर प्राप्त कर जिज्ञासा का समाधान किया ।

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