सीहोर। शहर के बस स्टैंड स्थित गीता मानस समिति के तत्वाधान में मंगलवार को गीता श्लोक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस मौके पर बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने भाग लिया। वहीं सोमवार को गीता जयंती के मौके पर मंदिर परिसर में यज्ञ-हवन और पूजन आदि का आयोजन किया गया था।
इस संबंध में जानकारी देते हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रदीप बिजोरिया ने बताया कि मंगलवार को आयोजित गीता श्लोक प्रतियोगिता के अंतर्गत सुबह नगर के बड़ी संख्या में पहुंचे विद्यार्थी ने स्पर्धा में भाग लिया। विद्यार्थियों ने निर्णायकों की उपस्थिति में मौखिक गीत श्लोक का गायन किया। निर्णायकों ने सभी का गायन सुनकर छह से आठ तक के प्रथम एवं नौ से 12 तक द्वितीय वर्ग के प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कारों का निर्णय लिया। कक्षा छह से आठ तक वर्ग के प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कारों का निर्णय लिया गया। छह से आठ तक में प्रथम देवाशी पाटीदार, द्वितीय अपूर्वा गांधी, तृतीय नैंसी राठौर, एवं कक्षा नौ से 12 तक प्रथम स्थान वैभवी गांधी, द्वितीय एंजिल देवलिया और तृतीय स्थान निधि गौर ने हासिल किया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पंडित अभिषेक भारद्वाज, राधे गोविंद गीते रहे। पुरस्कार श्रीमती शंकुतला मोहन चौरसिया की स्मृति में प्रदान किए गए। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रदीप बिजोरिया, संचालन अजय मिश्रा, विष्णु भरतिया, मोहन चौरसिया, अनिल मिश्रा, चंद्रभान यादव, सत्यनारायण शर्मा, रवि ठकराल, विजेन्द्र जायसवाल, जतिन शर्मा आदि शामिल थे।
गीता के बारे में आज के दौर में समझना जरूरी
वर्तमान में गीता के महत्व पर प्रकाश डालते हुए पंडित श्री भारद्वाज ने कहाकि आज के दौर में गीता को समझना इसलिए जरूरी है क्योंकि इसकी शिक्षाएं आज भी जीवन की चुनौतियों से निपटने, उद्देश्यपूर्ण और करुणामय जीवन जीने तथा आंतरिक शांति प्राप्त करने के लिए प्रासंगिक हैं। यह कर्म योग, ज्ञान योग और भक्ति योग जैसे व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रदान करती है और सिखाती है कि कैसे आसक्तिहीन होकर कर्म किया जाए, जिससे व्यक्ति लोभ और अहंकार से दूर रह सकता है। गीता हमें सिखाती है कि केवल कर्म पर ध्यान देना चाहिए, उसका फल ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए, और यह कि सबसे महत्वपूर्ण चीजें समय के साथ धीरे-धीरे विकसित होती हैं। उन्होंने यहां पर बड़ी संख्या में विद्यार्थियों को संस्कार और संस्कृति से जोड़े रहने की बात कही।

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