कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी मंगलवार को मनाई जाएगी कुबेरेश्वरधाम पर आज किया जाएगा भव्य श्री हरि-हर मिलन महोत्सव हरि और हर के बीच श्रद्धा का प्रतीक महोत्सव-अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा



सीहोर। जिला मुख्यालय के समीपस्थ देश और विदेश में प्रसिद्ध कुबेरेश्वरधाम पर मंगलवार की शाम पांच बजे भव्य श्री हरि-हर मिलन महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। महोत्सव में शामिल होने के लिए एक दिन पहले ही हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होने के लिए पहुंच रहे है। विठलेश सेवा समिति और प्रशासन ने भी यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यातायात, पुलिस दल और पार्किंग आदि की व्यवस्था की है। हर साल की तरह इस साल भी अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा के मार्गदर्शन में महोत्सव का आयोजन किया जाएगा। श्रद्धालुओं के लिए निशुल्क भंडारे की व्यवस्था की गई है। सोमवार की सुबह विठलेश सेवा समिति की ओर से पंडित समीर शुक्ला, पंडित विनय मिश्रा सहित अन्य ने यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भोजन प्रसादी की व्यवस्था की। यहां पर आने वाले श्रद्धालु रात्रि में भजन कीर्तन करेंगे। वहीं सोमवार को पंडित श्री मिश्रा ने कहाकि हरि-हर मिलन की धार्मिक-सांस्कृतिक परम्परा अपना विशेष महत्व रखती है। हर साल मंदिर परिसर में भव्य आयोजन किया जा रहा है।

विठलेश सेवा समिति के मनोज दीक्षित मामा ने बताया कि कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी मंगलवार को मनाई जाएगी। इसे बैकुंठ चतुर्दशी भी कहते हैं। शाम को हरिहर मिलन होगा। हरि यानि भगवान विष्णु और हर मतलब भगवान शिव। इस दिन शिवजी भगवान विष्णु को सृष्टि के संचालन का कार्यभार सौंपेंगे। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान विष्णु चातुर्मास के दौरान देवशयनी ग्यारस से देवउठनी ग्यारस तक शिव को संपूर्ण जगत की राजसत्ता सौंपकर क्षीरसागर में विश्राम करने जाते हैं। बैकुंठ चतुर्दशी पर ये सत्ता फिर शिवजी भगवान विष्णु को सौंपते हैं। हरि-हर मिलन की परंपरा कार्तिक महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव और विष्णुजी का मिलन करवाया जाता है। दोनों देवताओं की महापूजा की जाती है। रात्रि जागरण भी किया जाता है। माना जाता है कि चातुर्मास खत्म होने के साथ भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागते हैं और इस मिलन पर भगवान शिव सृष्टि चलाने की जिम्मेदारी फिर से विष्णु जी को सौंपते हैं। भगवान विष्णु जी का निवास बैकुंठ लोक में होता है इसलिए इस दिन को बैकुंठ चतुर्दशी भी कहते हैं। बैकुंठ चतुर्दशी का ये व्रत शैवों और वैष्णवों की पारस्परिक एकता का प्रतीक है।


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