संकल्प वृद्धाश्रम के तत्वाधान में शिव-शक्ति दिव्य अनुष्ठान का आयोजन देवी भागवत पुराण में, देवी को आध्यात्मिक मुक्ति का स्रोत भी माना गया-पंडित राघव मिश्रा

 


सीहोर। देवी को शक्ति का प्रतीक माना जाता है, जो ब्रह्मांड की रचनात्मक और परिवर्तनकारी ऊर्जा है। देवी की पूजा करने से, भक्त अपनी आध्यात्मिक शक्ति को जागृत कर सकते हैं और मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। कई स्तोत्रों और मंत्रों में, देवी को मुक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करने वाली के रूप में वर्णित किया गया है। इसलिए देवी भागवत पुराण में, देवी को आध्यात्मिक मुक्ति का स्रोत भी माना गया। उक्त विचार शहर के सैकड़ाखेड़ी पर संकल्प वृद्धाश्रम परिवार के तत्वाधान में जारी 15 दिवसीय शिव-शक्ति दिव्य अनुष्ठान के दूसरे दिन पंडित राघव मिश्रा ने कहे।

अनुष्ठान के दूसरे दिन पंडित श्री मिश्रा ने यहां पर प्रवचन के साथ-साथ भजन और ध्यान कराया और कहाकि पूजा या आराधना एक अनुष्ठानिक अभ्यास है जिसमें देवताओं को प्रसाद चढ़ाना और प्रार्थना करना शामिल है। यह भक्ति और श्रद्धा की अभिव्यक्ति है, जो भक्त और ईश्वर के बीच एक गहरे संबंध को बढ़ावा देती है। पूजा आशीर्वाद, मार्गदर्शन और शुद्धि प्राप्त करने के साधन के रूप में कार्य करती है, जो आध्यात्मिक विकास और अंतत: मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है। इस मौके पर श्रद्धा भक्ति सेवा समिति की ओर से राहुल सिंह, जिला संस्कार मंच के जिला संयोजक जितेन्द्र तिवारी, शिव प्रदोष सेवा समिति की ओर से पंडित कुणाल व्यास सहित अन्य ने यहां पर मौजूद आधा दर्जन बुजुग महिलाओं का सम्मान किया।

नौ दिन की जाएगी देवी की आराधना

श्रद्धा भक्ति सेवा समिति के मनोज दीक्षित मामा ने बताया कि गुप्त नवरात्रि में साधक पूरी आस्था के साथ पूजा अर्चना करती है। भक्त अत्यधिक भक्ति और समर्पण के साथ मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करते हैं। साथ ही नौ दिनों तक कठिन उपवास का पालन करते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, गुप्त नवरात्र साल में दो बार माघ और आषाढ़ माह में आते हैं। भगवती के दस रूपों की पूजा गुप्त नवरात्र में की जाती है। मां भगवती के दस रूपों दर्शन-पूजन क्रम में पहले दिन मां काली, दूसरे में मां तारा देवी, तीसरे में मां त्रिपुर सुन्दरी, चौथे में मां भुवनेश्वरी, पांचवें में मां छिन्नमस्ता, छठे में मां त्रिपुर भैरवी, सातवें में मां धूमावती, आठवें में मां बगलामुखी, नौवें में मां मातंगी और दसवें दिन मां कमला देवी की पूजा होती है, मां के इन दस स्वरूपों को पूजा-अर्चना करने का ख़ास महत्व है। कुल चार नवरात्रि का वर्णन है। चैत्र और शारदीय नवरात्रि के अलावा दो गुप्त नवरात्रि भी होती हैं। एक गुप्त नवरात्रि माघ और दूसरी आषाढ़ के महीने में पड़ती है। इस समय असाढ़ माह चल रहा है और साल की पहली गुप्त नवरात्री इसी माह में होगी। गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा के उपासक गुप्त तरीके से पूजा उपासना करते हैं। आषाढ़ माह में पडऩे वाले गुप्त नवरात्रि की शुरुआत शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होती है। गुप्त नवरात्रि में नौ दिन मां दुर्गा की विधि विधान से पूजा उपासना करते हैं, उन्हें नवग्रह से शांति मिलती है। गुप्त नवरात्रि में गुप्त विद्याओं की सिद्धि के लिए विशेष साधनाएं की जाती है। इन दिनों तंत्र साधना का विशेष महत्व होता है। इन तंत्र साधनाओं को गुप्त रूप से किया जाता है. इसलिए इसे गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। इस दुर्गा माता को शक्ति का रूप माना जाता है। इसलिए, इस दौरान 9 दिनों तक संकल्प लेकर व्रत रखना होता है। इस दौरान प्रत्येक दिन सुबह और शाम को मां दुर्गा की आराधना करनी होती है। इसके साथ अष्टमी या नवमी पर कन्या पूजन कर व्रत तोड़े जाते हैं। गुप्त नवरात्रि में दुर्गा चालीसा और दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करना होता है। गुप्त रूप से देवी मां और महाशक्ति की आराधना करने के चलते ही इन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। गुप्त नवरात्रि में पूजा और मनोकामना जितनी ज्यादा गोपनीय होंगी, सफलता उतनी ही ज्यादा मिलेगी। 


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