जहरीले रसायनों के अंधाधुंध प्रयोगों से हो सकती है कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी-नागर


सीहोर। देश में रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोगों व कीटनियंत्रकों के उपयोग से जमीन में जैविक कार्बन की मात्रा लगातार घट रही है। जहरीले रसायनों के प्रयोग से कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियाँ बढ़ गई है। शिवशक्ति बायो ग्रुप द्वारा ग्राम धबोटी में एक किसान संगोष्ठी में बताया कि मृदा में आवश्यक न्यूनतम मानक से 18 गुणा तक कम हो गई है। उपजाऊ मिट्टी में जैविक कार्बन की न्यूनतम मात्रा 0.90 प्रतिशत आवश्यक है। देश में 2016 में 6 करोड़ के लगभग हुए मिट्टी जांच परीक्षणों की रिपोर्ट में मिट्टी में उपलब्ध जैविक कार्बन की मात्रा केवल 0.05 प्रतिशत पाई गई थी। मृदा में जैविक कार्बन में 0.01-0.02 प्रतिशत की कमी धरती को पूरी तरह बंजर कर सकती है। अमरीका की एक संस्था इंटरनेशनल फैडरेशन ऑफ ऑर्गेनिक एग्रीकलचर मूवमेंट ने भी अपनी रिपोर्ट में बताया कि भारत में वर्तमान कृषि पद्धति को नहीं सुधारा गया तो 2030 तक मृदा में जैविक कार्बन की मात्रा खतरनाक स्तर तक गिर करके 0.025 प्रतिशत के स्तर तक आ सकती है, जो बीजों के अंकुरण में अक्षम होगी व जमीन बंजर हो जाएगी। देश में अभी प्रमाणिक रूप से केवल 5 से 6 प्रतिशत हिस्से में ही जैविक कृषि हो रही है।

जमीन को बंजर होने से बचाने का एक मात्र उपाय गौ आधारित जैविक कृषि पद्धति हैं। रसायन के कारण खेती बाजार आधारित हो गई, जिससे फसल उत्पादन लागत बढऩे से खेती घाटे का कारण बन रही है। रसायनिक पद्धति से गेहूं उत्पादन करने पर उसकी प्रति किलो लागत 30 रुपए आती है वहीं अगर इसे जैविक कृषि पद्धति से उत्पादित किया जाए तो इसकी लागत 11 रुपए किलो तक घटाई जा सकती 


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